सरस्वती जन्मोउत्सव अर्थात बसंत पंचमी सरस्वती पूजन पर संतोष गुप्ता पिथौरा की विशेष रिपोर्ट - sanskar.live
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फ़रवरी 05, 2022

सरस्वती जन्मोउत्सव अर्थात बसंत पंचमी सरस्वती पूजन पर संतोष गुप्ता पिथौरा की विशेष रिपोर्ट

सरस्वती जन्मोउत्सव अर्थात बसंत पंचमी  सरस्वती पूजन पर संतोष गुप्ता पिथौरा की विशेष रिपोर्ट



       बसंत पंचमी माघ महीने के शुक्ल पंचमी को मनाई जाती है । धार्मिक मान्यता अनुसार ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती धरती पर अवतरित होती है और लोगों की मनोकामनाएं पूरी करती है ।                        

          सजी धजी धरती ऐसे समय में बड़ी मनमोहक होती है । चारों ओर हरियाली, मखमली चादर ओढ़े ,प्यारी सुंदर सजी धरती मानो सोलह श्रृंगार की नज़र आती है जो नयनों के साथ तन मन को उल्लासित करती है । सुरभित वातावरण , भौरों के गुंजन के साथ विभिन्न  रंग बिरंगे फूलों से सजी धरती आम्र मंजरियों  में लगे छोटे छोटे आम फल पायल में लगे घुंघरुओं सा प्रतीत हो अपनी ओर आकर्षित कर रहे हो । इस समय विभिन्न प्रदेशों के लोग भिन्न भिन्न तरीकों से देवी की आराधना करते है ।
             धार्मिक मान्यता के अनुसार ज्ञान की अधिष्ठात्री कलाओं की जननी माँ सरस्वती का जन्म बसंत पंचमी के दिन हुआ ।  बसंत पंचमी में पाँच तत्व ज्ञान ,अमृत , विद्या , बुद्धि और प्रकृति तत्व विद्यमान रहते है और इन्ही पाँच तत्वों का ज्ञान मय प्रकाश से माँ सरस्वती प्रगट होती है । जब हम सरस्वती का ध्यान करते है तब हमारे सामने कुंद पुष्प चंद्रमा तथा बर्फ माला के समान धवल श्वेत वस्त्र पहनी हुई हाथों में श्रेष्ठ वीणा धारण किये श्वेत कमलासन पर स्थित  दिखाई पड़ती है ।  ऐसी  देवी माँ सरस्वती की वंदना ब्रम्हा , विष्णु , महेश आदि देवता भी करते है श्वेत वर्मा ब्रम्हज्ञान के निष्कर्ष की परम आद्य स्वरूपा संसार व्यापिनी वीणा एवं पुस्तक को धारण की हुई अभय देने वाली जड़ता के अंधकार को ज्ञान के प्रकाश में बदलने वाली समस्त संसार को सार श्रेष्ठ बुद्धि के प्रदाता भारती महाविद्या महावाणी सरस्वती आर्या , ब्रम्ही महाधेनु , वेदगर्भा , सुरेश्वरि , आदि नामों से जानी गई माँ सरस्वती की उत्पत्ति ब्रम्हा के शरीर से हुई है । इनका वर्ण गौर है । भुजाएँ चार है जिनमें से वीणा , पुस्तक , दण्ड कमल , एवं मुक्तमाला धारण किये रहती है । ये शरीर पर श्वेत वस्त्र धारण तथा मुकुट धारण करती है । इनका वाहन हँस व आसन कमल है । माँ सरस्वती के हाथ की वीणा जीवन संगीत , एवं सिद्धि मांगल्य नाद ब्रम्हा का सूचक है । हाथ में जो पुस्तक है वह सर्वज्ञानमयता का घोतक है । हाथ में जो माला है वह एकाग्रता एवं मातृका वर्ण शक्ति की सूचक है । इनके हाथ का कमल सृष्टि का प्रतीक है । 
        इनकी ज्ञान मुद्रा वागीश्वरी शक्ति सर्व व्यापकता का प्रतीक है । राजहँस नीर क्षीर विवेकत्त्व का प्रतीक है । मयूर शक्ति का बोधक है ।वागीश्वरी की कृपा से ही वाणी बुद्धि की प्रखरता प्रगट होती है । वाक तत्व , बुद्धि तत्व , ज्ञान तत्व , ओज तत्व की प्राप्ति माँ सरस्वती के अभाव में संभव नहीं ।बसंत पंचमी को माँ सरस्वती की पूजा की जाती है साथ ही बसंत के राजा कामदेव बसंत की देवी रति की भी पूजा की जाती है ।

माँ सरस्वती के महिमा का जितनी भी गुणगान करें कम है । पर जो मैंने संतो , महापुरुषों , ज्ञान , विज्ञान , स्कूलों में गुरुजनों से सुना वेद पुराणों के कथावाचकों से सुना उन्हीं बातों से संकलित , संचित आलेख में वर्णित है ।

         संतोष गुप्ता पिथौरा
सचिव श्रृंखला साहित्य मंच
 फोन - 9977960977

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